हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं मुझको मेरी तन्हाई से अब शिकायत नहीं है, नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो…” उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं तिरी ख़ुशबू मिरी चादर https://youtu.be/Lug0ffByUck